विज्ञान

विश्व गौरैया दिवस (20 मार्च) : फुदकते हुए आंगन में लौट आओ गौरेया!

अनुमान है कि गौरैया मनुष्य के साथ लगभग 10 हजार वर्षों से अधिक समय से रह रही है।

नई दिल्ली: मानव जीवन प्रकृति के सह-अस्तित्व पर ही निर्भर है। प्रकृति सभी जीवों एवं वनस्पतियों के जीवन का आधार है। मानव, पशु-पक्षी,  सागर-सरिताएं, गिरि-कानन आदि सभी से मिलकर एक जैव-पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण होता है। इस पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाये रखने के लिए जैव विविधता का होना अति-आवश्यक है। लेकिन, आधुनिक मानवीय क्रियाकलापों द्वारा जैव विविधता का निरंतर क्षय हो रहा है, जिसके कारण जीवों की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। गौरेया भी इसी तरह के संकट का शिकार है।

गौरैया अब शहरों में दुर्लभ हो गया है। हालांकि, गाँव के लोगों को अभी भी इसकी चहचहाहट सुनने को मिल जाती है। अनुमान है कि गौरैया मनुष्य के साथ लगभग 10 हजार वर्षों से अधिक समय से रह रही है। लेकिन, हमारी आधुनिक जीवनशैली गौरैया के लिए घातक सिद्ध हो रही है। शहरों में बढ़ता ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया की घटती आबादी के प्रमुख कारणों में से एक है। गौरैया की घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने वर्ष 2002 में इसे ऐसी प्रजातियों में शामिल कर दिया, जिनकी संख्या कम है, और वे विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसी क्रम में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में घोषित किया गया, ताकि गौरैया के बारे में जागरूकता को बढ़ाया जा सके। इस वर्ष विश्व गौरैया दिवस की थीम ‘आई लव स्पैरो’ है।

गौरैया एक बहुत ही छोटा पक्षी है, जिसकी लंबाई औसतन 16 सेंटीमीटर होती है। इसका वजन महज 20 से 40 ग्राम तक का होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर गौरैया की लगभग 43 प्रजातियां उपलब्ध हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में इसकी संख्या में 60 से 80 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इसकी आयु आमतौर पर 04 से 07 वर्षों की होती है। गौरेया दिखने में भी काफी आकर्षक होते हैं, और आमतौर पर यह पक्षी अपने भोजन की तलाश में कई किलोमीटर दूर तक जा सकते हैं। गौरैया आमतौर पर 38 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ सकते हैं। अगर गौरैया पक्षी के रंग की बात जाए तो यह हल्के भूरे और सफेद रंग का होता है। इसकी चोंच पीले रंग की होती है। गौरैया की आवाज बहुत ही मधुर और सुरीली होती है।

यह पक्षी अब बेहद कम दिखाई देते हैं, जिसके पीछे सबसे बड़ा कारण मानव का पारिस्थितिक तंत्र में हस्तक्षेप करना है। गौरैया अपना घोसला बनाने के लिए छोटे पेड़ों या झाड़ियों को पसंद करती है। लेकिन, मनुष्य उन्हें काटता जा रहा है। शहरों और गाँवों में बड़ी तादाद में लगे मोबाइल फोन के टावरों को भी गौरैया समेत दूसरे पक्षियों के लिए खतरा बताया जाता है। इनसे निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगें इन पक्षियों पर प्रभाव डालती हैं।

गौरैया पक्षी पारिस्थितिक तंत्र के एक हिस्से के रूप में हमारे पर्यावरण को बेहतर बनाने की दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। गौरैया अल्फा और कटवर्म नामक कीड़े खाती है, जो फसलों के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। इसके साथ-साथ गौरेया बाजरा, धान, चावल के दाने भी खाती है।

वर्तमान समय में विश्व स्तर पर इसके संरक्षण के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। भारत सरकार भी इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रही है। राजधानी दिल्ली और बिहार ने गौरैया को अपना राजकीय पक्षी घोषित किया है। इसके साथ ही, दिल्ली में ‘सेव स्पैरो’ के नाम से इसके संरक्षण की मुहिम भी चलाई गई है। एनएफएस द्वारा गुजरात के अहमदाबाद में ‘गौरैया पुरस्कार’ की घोषणा की गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे लोगों की सराहना करना है, जो पर्यावरण और गौरेया संरक्षण में अपना योगदान दे रहें हैं।

मानव द्वारा पर्यावरण का जो विनाश हो रहा है, उससे कई प्रजातियां विलुप्त होने की स्थिति में हैं, जिसमें गौरेया पक्षी की भी गिनती की जा सकती है। विलुप्त हो रही गौरेया मानव को यह संकेत देना चाहती है कि बहुत हो चुका पर्यावरण का विनाश, अब इसका और विनाश मत करो! मानव को समझना होगा कि गौरेया पक्षी की हमारे जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका है और इसका संरक्षण भी जरूरी है। (इंडिया साइंसवायर)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button