टेक्नोलॉजीविज्ञान

बेहतर वीयरेबल मोशन-सेंसर के लिए नई जलरोधी सामग्री

नई दिल्ली: भारतीय शोधकर्ताओं नेवीयरेबल; यानी पहनने योग्य मोशन सेंसर बनाने के लिए नई जलरोधी सामग्री विकसित की है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये मोशन सेंसर पुनर्वास प्रक्रियाओं के दौरान चाल-ढाल के विश्लेषण, और रोगियों की निगरानी जैसे अनुप्रयोगों में उपयोगी हो सकते हैं।

वीयरेबल मोशन सेंसर आमतौर पर ऐसी सामग्री से बने होते हैं, जो मानव गति से उत्पन्न होने वाले यांत्रिक तनाव को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करते हैं। बड़ी और सूक्ष्म दोनों गतिविधियों के प्रति यह सामग्री लचीली, मजबूत और अत्यधिक संवेदनशील होनी चाहिए।

इस अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी सामग्री विकसित की है, जो संवेदनशीलता और स्थायित्व दोनों दृष्टियों से मौजूदा तनाव सेंसर से बेहतर होने का वादा करती है।

अब तक, पहनने योग्य तनाव सेंसर पॉलिमर या कपड़े से बने होते थे, जिसमें विशेष सामग्री के नैनो-कणों को एम्बेड किया जाता था। इसमें गति का पता लगाने के लिए निरंतर खिंचाव बना रहता है, जो समय के साथ सामग्री की क्षमता को कम करके उसे विफलता की ओर ले जाता है।

शोधकर्ताओं ने एक धातु-मुक्त, रासायनिक रूप से प्रतिक्रियाशील और विद्युत चालकता से लैस स्याही विकसित की है, जिसे उन्होंने एक विशिष्ट पैटर्न में रासायनिक रूप से प्रतिक्रियाशील कागज पर जमा किया है। संचालन के विभिन्न चक्रों के दौरान पैटर्न वाले इंटरफेस को स्थिर पाया गया। इसके अलावा, यह सामग्री घर्षण के प्रति सहनशील, अत्यधिक जलरोधी, और निम्न तनाव स्तरों के प्रति संवेदनशील पायी गई है।

यह अध्ययन आईआईटी, गुवाहाटी के रसायन विज्ञान विभाग के डॉ उत्तम मन्ना और इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर रॉय पैली के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययनकर्ताओं में, सुप्रिया दास, राजन सिंह, अविजीत दास और सुदीप्ता बाग शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘मैटेरियल्स होराइजन्स’ में प्रकाशित किया गया है।

डॉ मन्ना ने कहा, “इस नई सामग्री का उपयोग करके बनाया गया सेंसर इतना संवेदनशील है कि यह मुस्कुराहट और हँसी को अलग-अलग पहचान सकता है, यहाँ तक कि निगलने की गति का भी पता लगा सकता है। यह स्वास्थ्य देखभाल, मानव-मशीन इंटरैक्शन और ऊर्जा संचयन सहित विभिन्न क्षेत्रों में उपकरणों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।” (इंडिया साइंस वायर)

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