विज्ञान

समुद्र जल स्तर में वृद्धि से लक्षद्वीप पर मंडराता खतरा

Rise in sea level threatens Lakshadweep

नई दिल्ली: ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापवृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों ने पूरी दुनिया के समक्ष किस्म-किस्म के जोखिम उत्पन्न कर दिए हैं। इनमें एक सबसे बड़ा खतरा समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी का है, जिससे सागर तट के किनारे बसे इलाकों पर अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है। भारत के समुद्र तटीय इलाके और द्वीप समूह भी इस जोखिम से अछूते नहीं है। हाल में हुए एक अध्ययन में इस खतरे को बहुत करीब से महसूस भी किया गया है। विभिन्न हरित गैस परिदृश्यों के आधार पर हुए इस अध्ययन में कहा गया है कि देश की पश्चिमी तट रेखा के पास में स्थित लक्षद्वीप में समुद्र तल में सालाना 0.4एमएम प्रति वर्ष से लेकर 0.9एमएम प्रति वर्ष के दायरे में बढ़ोतरी हो सकती है।

इस अध्ययन में यह दर्शाया गया है कि उत्सर्जन के विभिन्न परिदृश्यों के अनुसार समुद्र जल स्तरमें बढ़ोतरी से यह पूरा द्वीप समूह संवेदनशील स्थिति में है। लक्षद्वीप को लेकर किया गया यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें क्लाइमेट मॉडल अनुमान के आधार पर भविष्य की तस्वीर का खाका खींचने का प्रयास किया गया है।  आईआईटी खड़गपुर के वास्तुशिल्प एवं क्षेत्रीय नियोजन और महासागर आभियांत्रिकी एवं नौवहन वास्तुशिल्प की संयुक्त टीम ने इस अध्ययन को मूर्त रूप दियाहै। इसअध्ययन के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत संचालित जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) ने भी सहयोग किया है।

उल्लेखनीय है कि 36 द्वीपों के समूह लक्षद्वीप न केवल अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए, बल्कि सामुद्रिक जैव-विविधता के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।इस अध्ययन के अनुसार समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी से लक्षद्वीप के चेलट और अमिनी जैसे छोटे द्वीपों को बहुत नुकसान होगा। समुद्र का बढ़ता जल इन द्वीपों की जमीन के एक बड़े हिस्से को निगल सकता है। इन अनुमानों के आधार पर अमिनी में 60 से 70 प्रतिशत के बीच तट रेखा और चेलट में 70 से 80 प्रतिशत तट रेखा पर समुद्र का पानी हावी हो सकता है। इसमें यह भी बताया गया है कि मिनिकॉय जैसे बड़े द्वीप और राजधानी कावारत्ती भी बढ़ते पानीके कोप से प्रभावित हो सकते हैं। यहाँ वर्तमान तटरेखा के 60 प्रतिशत हिस्से का समु्दी जल की चपेट में आने की आशंका है। आंद्रोथ द्वीप के समुद्र तल में बढ़ोतरी से सबसे कम प्रभावित होने की संभावना है।

इसशोध-अध्ययन के निष्कर्ष ‘रीजनल स्टडीज इन मैरिन साइंस’ में प्रकाशित किए गए हैं। अध्ययन के अनुसार ऐसे घटनाक्रम के व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भी पड़ेंगे। शोधार्थियों का मानना है कि तट रेखा के समीप रहने वाले लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। इतना ही नहीं, इस द्वीप पर मौजूद इकलौता हवाईअड्डा अगाट्टी द्वीप के दक्षिणी सिरे पर अवस्थित है और समुद्रजल स्तर में बढ़ोतरी से उसको भारी नुकसान पहुँचने की आशंका व्यक्त की गई है। समुद्र के बढ़ते जल स्तरसे होने वाले संभावित नुकसान को कम से कम करने के लिए शोधार्थियों ने उचित संरक्षात्मक उपायों और समयबद्ध योजनाएं बनाने की अनुशंसा की है।

यह अध्ययन तरंग ऊर्जा की दिशा, अरब सागर क्षेत्र में तूफानों की प्रकृति और पोर्टेबल वाटर से लेकर स्वच्छता आदि पहलुओं पर भी भविष्य में किए जाने वाले अध्ययनों में भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। (इंडिया साइंस वायर)

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