“अत्यधिक बरसात के पीछे अत्यधिक सिंचाई”
नई दिल्ली: खेती में सिंचाई की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, सिंचाई के मामले में मौसम-विज्ञानियों का नया खुलासा चौंकाने वाला है। एक नये अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सिंचाई भी चरम मानसूनी घटनाओं का कारण बन सकती है।
मौसम-विज्ञानी हर तरह के मौसमी बदलावों से जुड़े तथ्यों को उजागर करने के लिए लगातार जुटे रहते हैं। मानसून प्रणाली में भूमि तथा वातावरण के बीच परस्पर संपर्क की भूमिका के बारे में समझ विकसित करने की कोशिश वैज्ञानिकों की इस कवायद में शामिल है। हालांकि, किसी भू-क्षेत्र में भूमि एवं जल प्रबंधन गतिविधियों के कारण मानसून पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे जानकारी कम ही है।
इसनये अध्ययन में अब पता चला है कि दक्षिण एशिया में मानसूनी वर्षा सिंचाई पद्धतियों के चुनाव से भी प्रभावित होतीहै। इसका सीधा अर्थ यह है कि व्यापक रूप से उपयोग होने वाली सिंचाई पद्धतियों का असर मानसूनी वर्षा पर भी पड़ता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तर भारत में अत्यधिक सिंचाई इस उप-महाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग की ओर सितंबर माह में होने वाली मानसून की वर्षा को स्थानांतरित कर देती है, जिससे मध्य भारत में मौसम की स्थितियां व्यापक रूप से चरम पर पहुँच जाती हैं। मौसम संबंधी ये खतरे कमजोर किसानों और उनकी फसलों के खराब होने का जोखिम बढ़ा देते हैं।
आईआईटी बॉम्बे में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एवं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित जलवायु अध्ययन में अंतर्विषयक कार्यक्रम (आईडीपीसीएस) उत्कृष्टता केंद्र के संयोजक सुबिमल घोष और उनकी टीम द्वारा यह अध्ययन किया गया है। जलवायु मॉडल का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने भारतीय ग्रीष्मकालीन मॉनसून पर कृषि कार्यों में जल के उपयोग के प्रभाव का आकलन किया है।
इस अध्ययन से संकेत मिलता है कि अत्यधिक वर्षा और सूखे से संबंधित खतरे तापमान की चरम स्थितियों की तुलना में फसलों के जोखिम को खतरनाक तरीके से बढ़ा देते हैं।
अध्ययन का एक निष्कर्ष यह भी है कि मध्य भारत में हाल के दशकों में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इसके लिए शोधकर्ता सिंचाई में वृद्धि एवं उसकी वजह से वाष्पीकरण में होने वाली वृद्धि (भूमि की सतह से वाष्पीकरण तथा पौधों से वाष्पोत्सर्जन का योग) को भी जिम्मेदार मानते हैं।
उल्लेखनीय है कि दक्षिण एशिया को दुनिया के सबसे अधिक सिंचित क्षेत्रों में से एक माना है, और सिंचाई के लिए यहाँ पानी का एक बड़ा हिस्सा भूजल से प्राप्त किया जाता है। इस क्षेत्र की प्रमुख ग्रीष्मकालीन फसल धान है, जिसकी खेती पानी से भरे खेतों में की जाती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमने पाया है कि चरम वर्षा की घटनाओं के दौरान सिंचाई से मध्य भारत में वर्षा की तीव्रता बढ़ जाती है। इन निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि जलवायु मॉडल में सिंचाई प्रथाओं का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व शामिल करना महत्वपूर्ण हो सकता है।
यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे और अमेरिका की पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लैबोरेटरी एवं ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष शोध पत्रिका जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित किए गए हैं। (इंडिया साइंस वायर)