अतिरिक्त सौर ग्रहों के अध्ययन में मददगार प्रकाश ध्रुवण
नई दिल्ली, 03 नवंबर: भारतीय खगोलविदों ने अतिरिक्त सौर ग्रहों के वातावरण को समझने की एक नई विधि खोजी है। उन्होंने दिखाया है कि सूर्य के अलावा अन्य तारों के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों का अध्ययन प्रकाश के ध्रुवण को देखकर और ध्रुवण के संकेतों के आधार पर किया जा सकता है। ध्रुवण संकेत या प्रकाश की प्रकीर्णन तीव्रता में परिवर्तन कोमौजूदा उपकरणों के साथ देखा जा सकता है और सौर मंडल से परे ग्रहों के अध्ययन का विस्तार किया जा सकता है।
ध्रुवण (Polarisation) अनुप्रस्थ तरंगों (जैसे, प्रकाश) का एक ऐसा गुण है, जो उनके दोलन की दिशा (orientation) से सम्बन्धित है। यहाँ ध्रुव का अर्थ ‘निश्चित’है । ध्रुवित तरंगों मेंसीमित रूप में दोलन होते हैं। जबकि, अध्रुवित तरंग में सभी दिशाओं में समान रूप से दोलन होता है।
कई पूर्व अध्ययनों में हमारे सौर मंडल की तरह कई अन्य तारों के चारों ओर भी ग्रहों के चक्कर लगाने का खुलासा हुआ है। अब तक ऐसे कोई5000 एक्सोप्लैनेट का पता लगाया जा चुका है। लगभग दो दशक पहले, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बंगलूरू के वैज्ञानिक सुजान सेनगुप्ता ने सुझाव दिया था कि गर्म युवा ग्रहों के थर्मल विकिरण और अन्य सितारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों के परावर्तित प्रकाश, जिन्हें अतिरिक्त-सौर ग्रह या एक्सोप्लैनेट के रूप में जाना जाता है, को भी ध्रुवित किया जा सकता है। उनका मानना था कि इस तरह ध्रुवण का मापन एक्सोप्लैनेटरी वातावरण की रासायनिक संरचना और अन्य गुणों का खुलासा कर सकता है।
भूरा बौना या ब्राउन ड्वार्फ़आकार में गैस दानव ग्रहों और तारों के बीच का स्थान रखने वाले ऑब्जेक्ट हैं, जिनका वातावरण बृहस्पति के समान होता है। ब्राउन ड्वार्फ़ के ध्रुवण की भविष्यवाणी की पुष्टि ने दुनियाभर के शोधकर्ताओं को अत्यधिक संवेदनशील पोलीमीटर बनाने और एक्सोप्लैनेटरी पर्यावरण की जाँच के लिए पोलारिमेट्रिक विधियों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है।
सुजान सेनगुप्ता के साथ काम कर रहे आईआईए में पोस्ट डॉक्टोरल शोधकर्ता अरित्रा चक्रवर्ती ने एक विस्तृत त्रि-आयामी संख्यात्मक विधि विकसित की है, और एक्सोप्लैनेट के ध्रुवण का अनुकरण किया है। सौर-ग्रहों की तरह, एक्सोप्लैनेट अपने तेजी से घूमने के कारण थोड़े तिरछे होते हैं। इसके अलावा, तारे के चारों ओर अपनी स्थिति के आधार पर, ग्रहीय डिस्क का केवल एक हिस्सा ही स्टारलाइट से प्रकाशित होता है। प्रकाश उत्सर्जक क्षेत्र की यह विषमता गैर-शून्य ध्रुवण को जन्म देती है।
शोधकर्ताओं ने पायथन-आधारितसंख्यात्मक कोड विकसित किया है, जिसमें एक अत्याधुनिक ग्रहीय वातावरण मॉडल शामिल है। इसमें विभिन्न झुकाव कोणों पर मूल तारे की परिक्रमा करने वाले एक्सोप्लैनेट की ऐसी सभी विषमताओं को नियोजित किया गया है। उन्होंने डिस्क केंद्र के संबंध में परिभाषित ग्रहों की सतह के विभिन्न अक्षांश और देशांतर पर ध्रुवण की मात्रा की गणना की है और घूर्णन-प्रेरित तिरछी ग्रहीय सतह परऔसत निकाला है। विभिन्न तरंगदैर्घयों पर ध्रुवण पर्याप्त रूप से अधिक होता है। इसीलिए, यदि स्टारलाइट अवरुद्ध हो तो साधारण पोलारिमीटर द्वारा भी इसका पता लगाया जा सकता है। यह एक्सोप्लैनेट के वातावरण के साथ-साथ इसकी रासायनिक संरचना का अध्ययन करने में मदद करता है।
“अगर हम सीधे ग्रह की छवि नहीं बना सकते हैं और अध्रुवीकृत स्टारलाइटग्रह के ध्रुवीकृत परावर्तित प्रकाश के साथ मिल सकती है, तो यह राशि एक मिलियन के कुछेक दहाई जितनी होनी चाहिए। फिर भी कुछ मौजूदा उच्च उपकरणों, जैसे- एचआईपीपीआई, पीओएलआईएसएच, प्लैनेट पोल, आदि द्वारा इसका पता लगाया जा सकता है। अरित्रा चक्रवर्ती ने कहा है कि यह अध्ययन उपयुक्त संवेदनशीलता के साथ उपकरणों को डिजाइन करने और पर्यवेक्षकों को एक नई दिशा देने में मदद करेगा।
ट्रांजिट फोटोमेट्री और रेडियल वेलोसिटी विधियों जैसे पारंपरिक और लोकप्रिय तरीकों के विपरीत, जो केवल किनारे पर देखे जाने वाले ग्रहों का पता लगा सकते हैं, यह पोलरिमेट्रिक विधि कक्षीय झुकाव कोणों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ परिक्रमा करने वाले एक्सोप्लैनेट का पता लगाकर उनकी आगे जाँच कर सकती है। इस प्रकार, निकट भविष्य में पोलारिमीट्रिक तकनीक से एक्सोप्लैनेट के अध्ययन के लिए नये द्वार खुलेंगे, जिससे पारंपरिक तकनीकों की कई सीमाओं को दूर करने में मदद मिल सकती है।
यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल’में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)