विज्ञान

शोधकर्ताओं ने विकसित किया पौधों से बना ‘वायु-शोधक’

नई दिल्ली,06 सितंबर: मानव स्वास्थ्य के लिएबढ़ते प्रदूषण की चुनौती निरंतर कठिन होती जा रही है। है। प्रदूषण-जन्य बीमारियों से बचने के लिए नित नए शोध किये जा रहे हैं, जिनमें पानी, खाद्य और हवा को शुद्ध करने के जतन शामिल हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)रोपड़ और कानपुर तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रबंधन अध्ययन संकाय ने एक जीवित-पौधे पर आधारित वायु शोधक यानी एयर प्यूरीफायर‘यूब्रीद लाइफ’ विकसित कियाहै। यह प्यूरीफायर अस्पताल, स्कूल, कार्यालय और घर जैसे कम हवदार स्थानों में वायु-शोधन की प्रक्रिया को विस्तारित करने में सक्षमहै।

आईआईटी रोपड़ की स्टार्टअप कंपनी‘अर्बन एयर लेबोरेटरी’ ने इस एयर प्यूरीफायर को विकसित किया है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा नामित एग्रीकल्चर एंड वाटर टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट हब (आईहब -एडब्लूएडीएच) है। स्टार्टअप के अनुसार यह दुनिया का पहला, अत्याधुनिक ‘स्मार्ट बायो-फ़िल्टर’ है जो सांसलेने वाली वायु को शुद्ध और ताज़ा कर सकता है। यह तकनीक,पत्तेदार प्राकृतिकपौधे के माध्यम सेहवा को शुद्ध करने का काम करती है। कमरे की हवा पत्तियों के साथ संपर्क करती है और मिट्टी-जड़ क्षेत्र में जाती है जहां अधिकतम प्रदूषक शुद्ध होते हैं। इस प्यूरीफायर में ‘अर्बन मुन्नार इफेक्ट’ और आईआईटी रोपड़ की एक अन्य नई तकनीक ‘ब्रीदिंग रूट्स’ का उपयोग किया गया है। इन तकनीकों से फाइटोरेमेडिएशन प्रक्रियामें तेजी लाई जा सकती है। फाइटोरेमेडिएशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पौधे हवा से प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से हटाते हैं। इस एयर प्यूरीफायर के परीक्षण में पीस लिली, स्नेक प्लांट, स्पाइडर प्लांट आदि शामिल किये गए हैं।

‘यूब्रीद लाइफ’ एक विशेष रूप से डिजाइन लकड़ी के बक्से में संयोजित किया गया फिल्टर है। विशिष्ट पौधों औरयूवी कीटाणुशोधन और प्री-फिल्टर से लैस यह वायु-शोधक चारकोल फिल्टर और उच्च दक्षता वाले वायु कणों यानी एचईपीए के माध्यम से गैसीय और जैविक प्रदूषकों को बाहर कर आंतरिक वायु गुणवत्ता में गुणात्मक रूप से सुधार करता है। इससे आंतरिक कक्ष में आक्सीजन का स्तर भी बढ़ता है। इस ढांचे के केंद्र में स्थित पंखा दबाव बनाकर शुद्ध हवा का चारों ओर (360 डिग्री) प्रसार करता है। इस अध्ययनमें वायु-शोधन के लिए कई विशिष्ट पौधों का परीक्षण किया गया। उनमें पीस लिली, स्नेक प्लांट और स्पाइडर प्लांट आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। उत्साहित करने वाला बिंदु यही है कि इन सभी ने आंतरिक वायु को शुद्ध करने में अच्छे परिणाम दिए हैं।

माना जाता है कि किसी भवन के भीतर यानी आंतरिक परिवेश की वायु अपेक्षाकृत अधिक प्रदूषित होती है। उचित वेंटिलेशन यानी हवा की सुगम आवाजाही न होना भी इसका एक प्रमुख कारण माना जाता है। इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट यह कहती है कि घर के अंदर की (इनडोर) वायु, बाहरी वायु की तुलना में पांच गुना अधिक प्रदूषित हो सकती है।

कोरोना महामारी के दौर में यह पहलू और चिंताजनक बन जाता है, क्योंकि लोगों से अधिक से अधिक अपेक्षा यही की जा रही है कि अपने घरों में ही रहें और जरूरत पड़ने पर ही बाहर निकलें। यही कारण है कि ‘द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ (जेएएमए) में हाल में प्रकाशित एक शोध ने सरकारों से प्रति घंटे वायु परिवर्तन यानी वेंटिलेशन को बेहतर करने के लिए भवनों के डिजाइन को बदलने का परामर्श दिया है। संस्थान के अनुसार, ‘यूब्रीद लाइफ’ इस चिंता का समाधान हो सकता है। यह परीक्षित उत्पाद ‘यूब्रीथ लाइफ’ घर के अंदर स्वच्छ हवा बनाए रखनेमें प्रभावी सिद्ध हो सकता है। 

इस शोध से यह भी पता चलता है कि कोविड-19 टीकाकरण कार्यस्थलों, स्कूलों और यहां तक कि पूरी तरह से वातानुकूलित घर भी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते जब तक कि वायु निस्पंदन, वायु शोधन और इनडोर वेंटिलेशन भवन के डिजाइन का हिस्सा नहीं बन जाते। परीक्षण के परिणाम,परीक्षण और रूपांकन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड और आईआईटी, रोपड़ की प्रयोगशाला द्वारा आयोजित किया गया है कि एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 150 वर्ग फुट के कमरे के आकार के लिए है। 

आईआईटी, रोपड़ के निदेशक प्रोफेसर राजीव आहूजा का कहना है कि ‘यूब्रीद लाइफ’ का उपयोग करने के बाद 15 मिनट में एक्यूआई का स्तर 311 से 39 तक गिर जाता है। प्रोफेसरआहूजा ने विश्वास जताया है कि यह दुनिया का पहला जीवित संयंत्र आधारित वायु शोधक गेम चेंजर साबित हो सकता है।

‘यूब्रीद लाइफ’ के सीईओ संजय मौर्य का कहना है कि इस उत्पाद के कुछ बायोफिलिक लाभ भी हैं, जैसे कि यह संज्ञानात्मक कार्य, शारीरिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक कल्याण का समर्थन करता है। इस प्रकार, यह कमरे में छोटे से वन का आभास कराता  है। उपभोक्ता को संयंत्र को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि 150 मिलीलीटर की क्षमता वाला ये एक अंतर्निर्मित जलाशय है जो पौधों की आवश्यकताओं के लिए एक बफर के रूप में कार्य करता है।(इंडिया साइंस वायर)                 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button